मेरी पैदाइश बिहार के ऐसे इलाके में हुई है जहाँ हर साल सैलाब आने की वजह से लाखों घर पानी में बह जाते हैं।
काग़ज़ तो दूर की बात है साहब हम तो अपनी जान बचा लेते हैं वही काफी है।
हमारे गाँव में ना स्कूल है
ना हमारे गाँव में कॉलेज है
ना हमारे गाँव हॉस्पिटल है
ना अच्छी सड़कें हैं
ना पीने के लिए साफ सुथरा पानी है
लेकिन फिर भी मेरे माँ बाप किसी तरह अपने गाँव में ही गुजारा कर लेते हैं
परंतु हमें उच्चतम शिक्षा प्राप्त करने के लिए राज्य से बाहर भेज देते हैं ताकि हमारा भविष्य उज्ज्वल हो।
और हम अपने छोटे से बैग में कुछ खाने के वस्तु रख कर भाई और बहनों के प्यार को त्याग कर माँ बाप की दुवाएं लेकर अपने राज्य से बाहर निकल जाते हैं।
उसके बाद बहुत सारी मुसीबतों और परेशानियों का सामना करना पड़ता है हमें।
राज्य से बाहर हम बहुत सारे ठोकरें खाते हैं यहाँ के लोग कभी हमें बिहारी बोल कर जलील करते हैं तो कभी गँवार बोलकर।
लेकिन इन सबको बर्दाशत करने के बाद जब किसी एक जगह जम जाते हैं तब जाकर कुछ राहत मिलती है।
लेकिन उसके थोड़े ही दिन बाद जब सरकारी कागज़ों की ज़रूरत होती है तो हमें नए सरकारी दस्तावेज बनाने पड़ते हैं और इस में कई महीने लग जाते हैं।
अब जबकी हम नये दस्तावेज बनवा चुके तो सरकार कह रही है पुरानी ही दस्तावेज चाहिए।
अब हम कहाँ से लाएं पुरानी काग्ज़ात? हमने तो सोचा था की भारत अब आज़ाद हो चुका है पूरा देश अब हमारा है हम कहीं भी रह सकते हैं।
लेकिन अब पता चला की हम अपने ही देश में आज़ाद नही हैं